फ्रायड का मनोलैंगिक विकास सिद्धांत (manolaingik vikas sidhant) :- सिग्मंड फ्रायड के “मनोलैंगिक विकास सिद्धांत” की मुखीय अवस्था, गुदीय अवस्था, लैंगिक अवस्था, अदृश्यावस्था, जननेन्द्रिय अवस्था के बारे में इस आर्टिकल के माध्यम विस्तार से समझाया गया है |फ्रायड की यह अवधारणा है कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास पर उसकी काम शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है। फ्रायड ने इस काम शक्ति को लिबिडो कहा है।साइकोसेक्सुअल थ्योरी भी कहा जाता है ।
मनोलैंगिक विकास सिद्धांत । Manolaingik Vikas Sidhant
Frayad Ka Manolengik Sidhant
लिबिडो (libido)
- काम शक्तियों को कहते है जिनसे सुख की प्रप्ति होती है।
- प्रेम, स्नेह व काम की प्रवृति को सिग्मंड फ्रायड ने लिबिडो कहा है ।
- यह एक स्वाभाविक प्रवृति है और यदि इस प्रवृति का दमन करने की कोशिश की जाती है तो व्यक्ति कुसमयोजित हो जाता है ।
मनोलैंगिक विकास के प्रतिपादक :- सिग्मंड फ्रायड
सिद्धांत का आधार :- मनोविश्लेषण वाद
फ्रायड का मनोलैंगिक विकास सिद्धांत (Freud Psychosexual Theory and stages)फ्रायड ने अपने इस सिद्धात में काम प्रवृति को विकास का महत्वपूर्ण अंग माना , इसके लिए फ्रायड ने मनोलैंगिक विकास का सिद्धांत दिया |
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सिगमंड फ्रायड की मनोलैंगिक विकास की अवस्थाये ( Stages of Psychosexual Development)
freud ka manolangik vikas siddhant सिग्मंड फ्रायड ने व्यक्ति के मनोलैंगिक विकास की निम्न पाँच अवस्थाएँ बतायी है फ्रायड के अनुसार विकास की अवस्थाएं in english
1. मुखावस्था (oral Stage) – जन्म से 2 वर्ष
2. गुदावस्था (Anal Stage)- 2 से 4 वर्ष
3. लिंग प्रधानावस्था (Phalic Stage) – 4 से 6वर्ष
4.अव्यक्तावस्था (latency Stage) -6 से 12 वर्ष
5. जननेंद्रियावस्था (Gental Stage) 12 वर्ष के बाद
1. मुखावस्था (oral Stage) – जन्म से 2 वर्ष
ये मनोलैंगिक विकास सिद्धांत की पहली अवस्था है |2 वर्ष से कम आयु के बच्चे इस अवस्था में होते है | इस अवस्था में लिबिड़ो क्षेत्र “मुख” होता है।
- इस अवस्था में बालक के ध्यान का केंद्र बिंदु”मुख” होता है अर्थात जो भी वस्तु बालक को मिलेगी उसे सीधा ही मुख में ले जाता है ।
- इस अवस्था में बालक काटना ,चुसना , निगलना आदि सभी क्रियाऐ सीखे लेता है |जिसके परिणाम स्वरूप बालक में मुख से करने वाली क्रियाओ में आनंद की अनुभूति होती है ।
- इस अवस्था में बालक में लिबोड़ो ग्रंथि का विकास हो जाता है जिसे लैंगिक ऊर्जा के साथ जोड़ा जाता है ।
मुखावस्था अवस्था में व्यक्ति में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते है
1. मुखवर्ती निष्क्रिय व्यक्तित्व (Oral Passive Personality) – आशावादिता ,विश्वास का गुण
2. मुखवर्ती /अनुवर्ती आक्रामक व्यक्तित्व (Oral Aggressive Personality) – शोषण ,प्रभुत्व, दुसरो को पीड़ा देना आदि गुण पाए जाते है |
फ्रायड ने ध्रूमपान की आदत को लिबिड़ो की अल्प संतुष्टि माना है |
2. गुदावस्था / गुदा प्रधान अवस्था (Anal Stage)- 2 से 4 वर्ष
- ये मनोलैंगिक विकास सिद्धांत की दूसरी अवस्था है। frayad ka manolengik sidhant
- इस अवस्था में बालक के ध्यान का केंद्र बिंदु“गुदा” होता है, अर्थात जिसके करने बालक मल – मूत्र त्यागना और रोकना उसके बार में बताना आदि,उन्हें रोकने में आन्नद की अनुभूति करते है |
- इस अवस्था में व्यक्ति का कामुकता क्षेत्र गुदा होता है। फ्रायड के करने का अर्थ यह है कि इस उम्र में बच्चा मुल-मूत्र त्यागकर कामुक क्रियाओं का आनंद उठाता है।
- इस अवस्था में बालक को व्यवहार क्रोधी , चिड़चिड़ा और कंजूस प्रवृति वाला हो जाता है
- और बात – बात पर रोने शुरू कर देता है ।
3. लिंग प्रधानावस्था (Phalic Stage) – 4 से 6 वर्ष Manolaingik Vikas Sidhant
- ये मनोलैंगिक विकास सिद्धांतकी तीसरी अवस्था है इसमें लिबिड़ो का स्थान “जननेंद्रिय” होता है |
- इस अवस्था में लड़को में “ओडीपस ग्रंथि” का विकास होता है और लडकियों में व “एलेक्ट्रा ग्रंथि” का विकास होता है इस अवस्था में बॉय अपनी माँ से ज्यादा प्रेम करता है गर्ल अपने पिताजी से ज्यादा प्रेम करती है
- इस अवस्था में लड़को में “मातृ प्रेम” की उत्पति व लडकियों में “पितृ प्रेम” की उत्पति होती है|
- जिसका कारण फ्रायड ने लडको में “मातृ मनोग्रंथि (Oedipus Complex) ” तथा लडकियों में ” पितृ मनोग्रंथि (Electra Complex)” को बताया है |
- मातृ मनोग्रंथि (Oedipus Complex) “ के कारण लडको से अचेतन मन में अपनी माता के लिए लैंगिक प्रेम की इच्छा होती है।
- जबकि पितृ मनोग्रंथि (Electra Complex)” के कारण लडकियों में अपने पिता की लिए लैंगिक आकर्षण उत्पन्न होने लगता है |
पूर्ण विकास कोशोरवस्था में होता है ( विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण )
4.अव्यक्तावस्था (latency Stage) -6 से 12 वर्ष
- ये मनोलैंगिक विकास सिद्धांत की चौथी अवस्था है इसमें लिबिड़ो का क्षेत्र अदृश्य हो जाता है |
- इस अवस्था के अत में बालक में शारीरिक परिवर्तन तेजी से होते है । जिन्हे बालक शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाता अत इस अव्यक्तावस्था का नाम दिया गया है ।
- यह अवस्था 6 से 12 वर्ष के बीच की आयु में आती है।
- इस अवस्था में काम शक्ति अदृश्य हो जाती है।
- इस अवस्था में बालक वह सामाजिक कार्यो और हम उम्र के बच्चो के साथ खेल कर अदृश्य लिबिड़ो को संतुष्टि प्राप्त करते है |
5. जननेंद्रियावस्था / जननात्मक(Gental Stage) 12 वर्ष के बाद
- ये मनोलैंगिक विकास सिद्धांत की पांचवी अवस्था है।
- 12 वर्ष के बाद इस अवस्था में बालक में यौन अंगो का पूर्ण विकास हो जाता है ।
- इसके बाद बालक में प्रजनन क्षमता विकसित हो जाती है ।
- इस अवस्था में इसमें हार्मोन्स का निर्माण होने लगता है।
- जिसके कारण से इस अवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होने लगता है | ये आकर्षण बहुत ही तीव्र होते है |
manolengik vikas sidhant
फ्रायड के कार्य और उन पर आधारित उनकी मान्यताओं के देखने पर हम यह पाते हैं कि फ्रायड ने मानव की पाशविक प्रवृति पर जरुरत से अधिक बल डाला था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि निम्नतर पशुओं के बहुत सारे गुण और विशेषताएं मनुष्यों में भी दिखाई देती हैं। उनके द्वारा परिभाषित मूल प्रवृति की संकल्पना भी इसके अंतर्गत आती है।
फ्रायड का यह मत था कि वयस्क व्यक्ति के स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाया जा सकता क्योंकि उसके व्यक्तित्व की नींव बचपन में ही पड़ जाती है, जिसे किसी भी तरीके से बदला नही जा सकता हालाँकि बाद के शोधों से यह साबित हो चुका है कि मनुष्य मूलतः भविष्य उन्मुख होता है। एक शैक्षिक (अकादमिक) मनोविज्ञानी के समान फ्रायड के मनोविज्ञान में क्रमबद्धता नहीं दिखाई देती परन्तु उन्होंने मनोविज्ञान को एक नई परिभाषा दी जिसके आधार पर हम आधुनिक मनोविश्लेषानात्मक मनोविज्ञान को खड़ा पाते हैं और तमाम आलोचनाओं के बाद भी असामान्य मनोविज्ञान और नैदानिक मनोविज्ञान में फ्रायड के योगदान को अनदेखा नही किया जा सकाता.
फ्रायड द्वारा प्रतिपादित मनोविश्लेषण का संप्रदाय अपनी लोकप्रियता के करण बहुत चर्चित रहा. फ्रायड ने कई पुस्तके लिखीं जिनमें से “इंटर प्रटेशन ऑफ़ ड्रीम्स”, “ग्रुप साइकोलोजी एंड द एनेलेसिस ऑफ़ दि इगो “, “टोटेम एंड टैबू ” और “सिविलाईजेसन एंड इट्स डिसकानटेंट्स ” प्रमुख हैं। 23 सितम्बर 1939 को लन्दन में इनकी मृत्यु हुई।
स्वमोह (नर्सिसिज्म)
फ्रायड के अनुसार जब बालक शैशव अवस्था में होता है तो अपने रूप पर मोहित हो जाता है और अपने आप से प्रेम करने लग जाता है |
इस प्रकार स्वमोह/आत्म प्रेम को फ्रायड ने “नर्सिसिज्म ” शब्द दिया |
शैशव अवस्था में बालक अपने रूप पर मोहित हो जाता है एव स्वय से प्रेम करने लगता है ।
नर्सिसिज्म बाल अवस्था में सर्वाधिक होता है |
इस आत्म प्रेम की भावना को फ्रायड ने नर्सिसिज्म कहा जाता है । यह किशोरावस्था में सबसे अधिक है ।
नार्सिसस – एक ग्रीक युवा जो पानी में अपनी परछाई को किसी अन्य की मानकर आसक्त हो जाता है। किशोरवस्था में यह आत्मकामिका कहलाती है जिसमें लिंग अवयवों को छुकर आनन्द की प्राप्ति करते है।
दुर्भिति – फ्रायड ने यह बताया है कि चिंता के प्रति बचाव को प्रदर्शित करती है। जो ID के दमित आवेगों से उपजा है। इसमें हैन्स के घोड़े के प्रति दुर्भिति का उदाहरण दिया है।
फ्रायड के सिद्धान्त का महत्त्व
- बाल्यवस्था के अनुभवों को महत्त्व प्रदान करना
- अचेतन अभिप्रेरणा पर सर्वाधिक बल ।
- बाल निर्देशन, मानसिक स्वास्थ्य, छात्र केन्द्रित अवधारणों को प्रोत्साहित करन
- शिक्षा के उद्देश्य को विस्तृत करना ।
- सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर बल ।
- मानव व्यवहार के निर्धारण में मूल प्रवृतियों पर महत्व देना।
आइजेन्क का व्यक्तित्त्व सिद्धान्त
व्यक्तित्व के तीनआधारभूत आयाम बताये
1.अन्तर्मुखता बनाम बहिर्मुखता (Interoversion Versus
अन्तर्मुखता – बहुत आसानी से प्रभावित, निराशावादी, चिन्ताग्रस्त कम उत्तेजित, कम महत्वाकांक्षी व गंभीर इनमें परम अहम प्रभावी
बहिर्मुखता – आवेगशील, परिवर्तनशील, क्रियाशील, सामाजिक इनमें इदम प्रभावी होता है।
2.उत्तेजनशीलता उन्माद (Neuroticisn) / स्नायु विकृति बनाम भावात्मक स्थिरता (Enotional Stability) – उत्तेजनशील
या उन्मादी सुझावग्राही, भावात्मक कमजोर, आक्रामक बैचेन हो है। जबकि भावात्मक स्थिर शांत व विश्वासी होते।
3. मनस्तापिता (Psychoticism)/सामाजिकता / पराह (Super Ego) – एकाग्रता, स्मरण पठन में कमजोर व कम धारा प्रवाही होता है। इनमें अनुवांशिक व तंत्रिका कारक महत्वपूर्ण व मनोवैज्ञानिक गुण गौण होते है तथा इनमें क्रूरता का गुण ज्यादा जबकि पराह बहुत सामाजिक होता है।
फ्रायड का मानना था कि व्यक्तित्व बाल्यावस्था, मुख्यतः पाँच वर्ष की आयु से पहले अच्छी तरह से स्थापित हो जाता है। मनोलैंगिक सिद्धांत जन्म से बच्चे के विकास का वर्णन करता है जिसके बाद यौन व्यवहार के साथ चरणों का एक समुच्चय होता है। मनोवैज्ञानिक ऊर्जा या कामेच्छा, किसी व्यक्ति के व्यवहार के पीछे प्रेरक शक्ति है।
संदर्भ :- hi.wikipedia.org
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