प्रकृति बनाम पोषण (Nature Vs Nurture In Hindi) व्यक्ति या बालक के विकास में प्रकृति या पोषण (Nature vs Nurture) दोनों में कौन सहायक है इस पर सभी मनोवैज्ञानिको में मत भेद है , कुछ मनोवैज्ञानिको का मानना है की बालक का विकास व व्यक्तित्व उसके अनुवांशिक पर निर्भर करता है कुछ का मानना है की ये उसके पोषण अर्थात उसके लालन पालन पर निर्भर करता है |
सामाजिक मनोविज्ञान की एक अवधारणा है “प्रकृति बनाम पोषण” (Nature vs Nurture) जिसका प्रयोग व्यक्ति के जन्मजात गुण (प्रकृति ) और उसके लालन – पोषण के समय मिले पर्यावरण या वातावरण के प्रभावों के द्वारा उसका विकास किस प्रकार से होता है |
Nature Vs Nurture In Hindi मनोविज्ञान और सामाजिक मनोविज्ञान की शब्दावली और अवधारणा है जिसका प्रयोग व्यक्तियों के जन्मजात सहज गुणों (स्वभाव अथवा प्रकृति) और उसकी परवरिश और पालन-पोषण के दौरान मिले पर्यावरण और माहौल के प्रभावों के द्वारा विकसित व्यवहार के लक्षणों की आपसी सम्पूरकता और बिरोधाभासों का विवेचन किया जाता है। शब्दावली के रूप में वस्तुतः यह अंग्रेजी के मुहावरे nature versus nurture का हिंदी शब्दानुवाद है और अंग्रेजी का यह वाक्य इंग्लैंड में काफ़ी पुराने समय से प्रचलित है जो खुद मध्यकालीन फ़्रांस से यहाँ आया।
प्रकृति बनाम पोषण (Nature vs Nurture theory) का सिद्धांत “सर फ्रांसिस गाल्टन” (Sir Francis Galton) द्वारा दिया गया था |
प्रकृति बनाम पोषण में अन्तर
प्रकृति
यहाँ पर प्रकृति का अभिप्राय एक बालक के जन्म जात गुण जो उसे उसके पूर्वजो से मिले है ,अर्थात बालक की प्रकृति उसके अनुवांशिक व वंशानुगत कारक जीन को दर्शाती है |
इसका साधारण शब्दों में अर्थ समझा जाए तो हम ये कह सकते है की जैसे माता-पिता ( पूर्वज ) होंगे वैसी ही संतति ( संतान ) होगी | प्रकृति इन विशेषताओं को संदर्भित करती है जो जन्मजात हैं। एक व्यक्ति विशिष्ट कौशल और विशेषताओं के साथ पैदा होता है। प्रकृति इस पहलू पर प्रकाश डालती है।
प्रकृति और पोषण की अवधारणा
बालक के विकास में प्रकृति को मानने वाले वैज्ञानिक
जीन पियाजे (Jean Piaget)
सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) – Theory of aggression
नोआम चाम्सकी (Noam Chomsky) – Language Acquisition
पोषण
यहा पोषण का अभिप्राय वातावरण से है , जिसमे व्यक्ति या बालक के गुण उसके पर्यावरण या आस – पास के वातावरण पर निर्भर करते है | जिसका अर्थ है बालक का लालन – पोषण , सामाजिक वातावरण , संस्कृति ,परिवार |
पोषण के अंतर्गत बालक के आस पास का वातावरण आता है जैसे की वह किस देश में रहता है , वहा की संस्कृति कैसी है यदि बालक के आस पास अच्छा वातावरण है तो उस बालक के गुण भी अच्छे होंगे नही तो वो बुरी संगति में जायेगा |
बालक के विकास में पोषण को मानने वाले वैज्ञानिक
लिटिल अल्बर्ट (Little Albert) – Fear and Phobia Acqusition
Zimbardo
बंडूरा (Bandura) – Social Learning Theory
स्किनर (Skinner)
प्रकृति-पोषण (Nature Nurture) विवाद क्या है?
प्रकृति-पोषण विवाद जन्मजात व वातावरण से सम्बन्धित होता है जो प्रकृति के समर्थक है वे मानते है कि बालक के विकास में जन्मजात की महत्वपूर्ण भूमिका है प्रकृति / वंशानुक्रम।/ जन्मजात के आधार पर यह बताया जा सकता है कि उसका विकास किस सीमा तक या किस दिशा में होगा यह वातावरण या संवरण को महत्वपूर्ण नहीं मानते जबकि पोषण/वातावरण के समर्थक मानते है कि उन्हें कैसी भी प्रकृति / जन्मजात का बालक दे दिया जाये उचित वातावरण व पोषण द्वारा उसके विकास को दिशा दी जा सकती है । अगर आप लोग बालक को अच्छे वातावरण में रहना चाहिए । और बालक को प्रकृति-पोषण विवाद जन्मजात व वातावरण होता है ।
नोट: जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था वंशानुक्रम के महत्व को व्यक्त करता है।
बालक के विकास का सामान्य मत प्रकृति व पोषण को समान महत्त्व देता है।
प्रकृति बनाम पोषण की परिभाषा
वुडवर्थ – मार्विस के अनुसार – ‘वातावरण में समस्त बाह्य तत्व आ जाते है जिन्होंने बालक को जन्म से प्रभावित किया है ।
वुडवर्थ के अनुसार – वंशानुक्रम आत्मा है व वातावरण शरीर दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।’
वशानुक्रम व वातावरण का समान महत्त्व है दोनों एक दूसरे के पूरक है
वुडवर्थ – वंशाक्रम x वातावरण का परिणाम विकास होता है। इसकी तुलना बीज (वंशानुक्रम) व धरती (वातावरण से की)
प्रकृति बनाम पोषण विशषताऐ
बुद्धि का प्रभाव – बालक का मानसिक विकास ज्यादा होगा तो सम्पूर्ण विकास अच्छा होगा।
लिंग का प्रभाव – लड़कियों का विकास जल्दी होता है।
अन्त: स्रावी ग्रंथियों का प्रभाव – जैसे पीयूष ग्रंथि के कम सक्रिय होने पर व्यक्ति बौना हो जाता है तथा अधिक होने पर अत्यधिक्लम्बाहो जाता है। थाईराईड ग्रन्थि के अधिक होने पर तनाव, चिन्ता व उत्तेजना अधिक होती है। थाईमस ग्रन्थि की अधिक होने पर शारीरिकव मानसिक विकास बाध्य ।
जन्म के क्रम का प्रभाव मध्यम जन्म क्रम के बालक का विकास अच्छा होता है प्रथम की अपेक्षा ।
सन्तुलित भोजन का प्रभाव – इससे विकास सही व तेज होता है।
भयंकर रोग या चोट का प्रभाव – विकास पर दुष्प्रभाव
मनोवैज्ञानिक कारक – रूचि, आदत, महत्त्वकांक्षा ।
सामाजिक व सांस्कृतिक कारक – परिवार, पड़ोस, मित्र- साथी, स्कूल, रेडियो, टी.वी. मन्दिर, वेशभूषा, इन्टरनेट
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