Shabd Rupantaran : नमस्कार साथियो एक बार फिर से आपका हमारी ब्लॉग पोस्ट में स्वागत है आज हम आपको हमारा आर्टिकल में हिंदी व्याकरण में” शब्द रूपांतरण अर्थ व प्रकार ” और आज हम पढ़ेंगे हिंदी व्याकरण में शब्द रूपांतरण, लिंग और वचन रूपांतरण व हिंदी भाषा में लिंग और वचन के शब्दों का रूपांतरण कैसे किया जाता है । शब्द रूपांतरण अर्थ व प्रकार
शब्द रूपांतरण किसे कहते है ?
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एवं क्रिया विकारी शब्द कहलाते हैं। प्रयोग के अनुसार इनमें परिवर्तन होता रहता है। विकार उत्पन्न करने वाले कारक तत्व जिनसे शब्द के रूप में परिवर्तन होता हैं, वे इस प्रकार हैं-
Shabd Rupantaran
विकारी शब्दों संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एव क्रिया उत्पन्न करने वाले विकार कारकों को विकारक कहते हैं । लिंग, वचन, कारक, काल तथा वाच्य से शब्द के रूप में परिवर्तन करने वाले भाव को शब्द रूपांतरण होता हैं, अतः ये सभी विकारक कहलाते हैं।
शब्द रूपांतरण
लिंग
लिंग शब्द का अर्थ होता है चिह्न या पहचान। व्याकरण के अंतर्गत लिंग उसे कहते हैं जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द के स्त्री या पुरूष जाति का होने का बोध होता है।
हिंदी भाषा में लिंग दो प्रकार के होते हैं-
(1) पुल्लिंग-
जिससे विकारी शब्द को पुरूष जाति का बोध होता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं, जैसे- मेरा, काला, जाता, भाई, रमेश, अध्यापक आदि।
जो शब्द, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की पुरुष जाति का अर्थ होता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं । जैसे – गोविन्द, जाता आदि
(2)स्त्रीलिंग-
जिससे विकारी शब्द के स्त्री जाति का बोध होता हैं, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं, जैसे-मेरी, काली, जाती, बहिन, विमला, अध्यापिका आदि।
जो शब्द, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की स्त्री जाति का अर्थ होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं । जैसे – सीता, जाती , गीता आदि ।
लिंग की पहचान के नियम- लिंग की पहचान शब्दों के व्यवहार से होती है। कुछ शब्द सदा पुल्लिंग रहते हैं तो कुछ सदैव स्त्रीलिंग ही रहते हैं, कुछ शब्द परंपरा के कारण पुल्लिंग या स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होती हैं ।जैसे-
- 1. पुल्लिंग शब्दों की पहचान :
प्राणी वाचक पुल्लिंग संज्ञाएं शब्दों :-
जैसे – पुरुष, बैल, बन्दर, पशु, खरगोश, गैण्डा, मेंढ़क, सांप, मच्छर, तोता, बाज,आदमी, मनुष्य, लड़का, शेर, चीता, हाथी, कुत्ता, घोड़ा, मोर, कबूतर, कौवा, उल्लू, खटमल, कछुआ,आदि ।
अप्राणी वाचक संज्ञाएं :-
निम्न संज्ञाएं सदैव पुलिंग में ही प्रयुक्त होती हैं ।
पर्वतों के नाम :- हिमालय, विंध्याचल, अरावली, कैलास, अल्पास आदि ।
महीनों के नाम :- भारतीय महीनों तथा अंग्रेजी महीनों के नाम –
जैसे- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, जनवरी, फरवरी, मार्च आदि ।
दिन या वारों के नाम :- सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार व शनिवार ।
देशों के नाम :- भारत, अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, इंडोनेशिया आदि । [ अपवाद – श्रीलंका (स्त्रीलिंग) ]
ग्रहों के नाम :- सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, शुक्र, राहु, केतु, अरुण, वरुण, यम । [ अपवाद – पृथ्वी (स्त्रीलिंग)]
धातुओं के नाम :- सोना, ताम्बा, लोहा, पीतल आदि ।[अपवाद – चांदी (स्त्रीलिंग)]
वृक्षों के नाम :- नीम, बरगद, बबूल, आम, पीपल, अशोक आदि । [ अपवाद – इमली (स्त्रीलिंग)]
अनाजों के नाम :- चावल, गेहूं, बाजरा, जौ आदि । [ अपवाद – ज्वार (स्त्रीलिंग)]
द्रव पदार्थों के नाम :- दूध, तेल, घी, शर्बत, मक्खन, पानी आदि । [ अपवाद – लस्सी, चाय (स्त्रीलिंग)]
समय सूचक नाम :- क्षण, सेकण्ड, मिनट, घण्टा, दिन, सप्ताह, पक्ष, माह आदि ।[ अपवाद – रात, सायं, सन्ध्या, दोपहर (स्त्रीलिंग)]
वर्णमाला के वर्ण :- सभी स्वर तथा क से ह तक सभी व्यंजन । [ अपवाद – इ, ई, ऋ (स्त्रीलिंग)]
समुन्द्रो के नाम :- हिन्द महासागर, प्रशान्त महासागर, अरब सागर आदि ।
मूल्यवान पत्थर व रत्नों के नाम :- हीरा, पुखराज, नीलम, पन्ना, मोती, माणिक्य आदि । [ अपवाद – मणि, लाल (स्त्रीलिंग)]
शरीर के अंगों के नाम :- सिर, बाल, नाक, कान, दाॅंत, गाल, हाथ, पैर, ओंठ, मुंह आदि । [ अपवाद – गर्दन, जीभ, अंगुली (स्त्रीलिंग)]
देवताओं के नाम :- वरुण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम आदि ।
स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों की पहचान :
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तिथियों के नाम :- प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि ।
भाषाओं के नाम :- हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, जापानी, मलयालम आदि ।
लिपियों के नाम :- देवनागरी, रोमन, गुरुमुखी, अरबी, फारसी आदि ।
बोलियों के नाम :- ब्रज, भोजपुरी, हरियाणवी, अवधी, राजस्थानी, गुजराती आदि ।
नदियों के नाम :- गंगा, गोदावरी, व्यास, ब्रह्मपुत्र, यमुना आदि ।
नक्षत्रों के नाम :- रोहिणी, अश्विनी, भरणी आदि ।
देवियों के नाम :- दुर्गा, रमा, ब्रह्माणी, उमा, गायत्री आदि ।
महिलाओं के नाम :- आशा, शबनम, रजिया, सीता, प्रियंका आदि ।
लताओं के नाम :- अमर बेल, मालती, तोरई आदि ।
(1) दिनों एवं महीनों के नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-सोमवार, चैत्र, अगस्त आदि।
(2) पर्वतों एवं पेडों के नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-हिमालय, अरावली, बबूल, नीम, आम आदि।
(3) अनाजों एवं कुछ द्रव्य पदार्थों के नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-चावल, गेहूंॅ, तेल, घी, दूध आदि।
(4) ग्रहों एवं रत्नों के नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-सूर्य, चंद्र, पन्ना, हीरा, मोती आदि।
(5) अंगों के नाम, देवताओं के नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-कान, हाथ, सिर, इन्द्र वरूण, पैर आदि।
(6) कुछ धातुओं के एवं समयसूचक नाम पुल्लिंग होते हैं, जैसे-सोने, लोहा, तांॅबा, क्षण, घंटा आदि।
(7) भाषाओं एवं लिपियों का नाम स्त्रीलिंग होते हैं, जैसे-हिंदी, उर्दू, जापानी, देवनागरी, अरबी, गुरूमुखी, पंजाबी आदि।
(8) नदियों एवं तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं, जैसे-गंगा, यमुना, प्रथमा, पंचमी आदि।
(9) लताओं के नाम स्त्रीलिंग होते हैं, जैसे-अमरबेल आदि।
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लिंग परिवर्तन-पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियम इस प्रकार हैं–
(1) शब्दांत ’अ’ को ’आ’ में बदलकर-
छात्र-छात्रा | पूज्य-पूज्या | सुत-सुता |
वृद्ध-वृद्धा | भवदीय-भवदीया | अनुज-अनुजा |
(2) शब्द के अंत में ’अ’ को ’ई’ में बदलकर-
देव – देवी | पुत्र-पुत्री | गोप-गोपी |
ब्राह्मण-ब्राह्मणी | मेंढक-मेंढकी | दास-दासी |
(3) शब्द के अंत में ’आ’ को ’ई’ में बदलकर-
नाना-नानी | लड़का-लड़की | घोडा-घोड़ी |
मामा – मामी | दादा-दादी | पोता-पोती |
(4) शब्द के अंत में ’आ’ को ’इया’ में बदलकर-
गुड्डा-गुडिया | डब्बा-डिबिया | कुता-कुतिया |
बेटा-बिटिया | लोटा-लुटिया | चूहा-चुहिया |
(5) शब्द के अंत में प्रत्यय ’अक’ को ’इका’ में बदलकर-
बालक-बालिका | पाठक-पाठिका | गायक-गायिका |
लेखक-लेखिका | नायक-नायिका | नर्तक-नर्तिका |
(6) शब्द के अंत में’आनी’ प्रत्यय लगाकर-
देवर-देवरानी | जेठ- जेठानी | सेठ -सेठानी |
भव-भवानी | चौधरी-चौधरानी |
(7)शब्द के अंत में ’नी’ प्रत्यय लगाकर-
शेर-शेरनी | मोर -मोरनी | भील-भीलनी |
हाथी-हथनी | ऊंट-ऊंटनी | जाट-जाटनी |
(8) शब्द के अंत में ’ई’ के स्थान पर ’इनी’ लगाकर-
तपस्वी-तपस्विनी | स्वामी-स्वामिनी |
(9) शब्द के अंत में ’इन’ प्रत्यय लगाकर-
कुम्हार-कुम्हारिन | सुनार-सुनारिन | नाई-नाइन |
चमार-चमारिन | माली-मालिन | धोबी-धोबिन |
(10) शब्द के अंत में ’आइन’ प्रत्यय लगाकर-
ठाकुर-ठकुराइन | मुंशी -मुंशियाइन | चौधरी-चौधराइन |
(11) शब्द के अंत में ’वान्’ के स्थान पर ’वती’ लगाकर-
पुत्रवान-पुत्रवती | भाग्यवान-भाग्यवती | सत्यवान-सत्यवती |
गुणवान-गुणवती | गुणवान-गुणवती | बलवान-बलवती |
(12) शब्द के अंत में ’मान’ के स्थान पर ’मती’ लगाकर-
श्रीमान-श्रीमती | बुद्धिमान-बुद्धिमती | आयुषमान-आयुष्मती |
(13) शब्द के अंत में ’ता’ के स्थान पर ’त्री’ लगाकर-
नेता-नेत्री | कर्ता-कत्र्री | दाता-दात्री |
अभिनेता-अभिनेत्री |
(14) शब्द के पूर्व में ’मादा’ शब्द लगाकर-
भालू-मादा भालू | खरगोश-मादा खरगोश | भेडिया-मादा भेदिया |
(15) भिन्न रूप वाले कतिपय शब्द-
कवि-कवयित्री | साधु-साध्वी | पुरूष-स्त्री |
वर-वधू | दूल्हा-दूल्हन | भाई-भाभी |
विद्वान-विदुषी | नर-नारी | बादशाह-बेगम |
वीर-वीरांगना | बैल-गाय | युवक-युवती |
मर्द-औरत | राजा-रानी | ससुर-सास |
शब्द रूपांतरण अर्थ व प्रकार विशेष :
- तारा, देवता, व्यक्ति, आदि शब्द संस्कृत भाषा में स्त्रीलिंग होते हैं किंतु हिन्दी भाषा में पुल्लिंग होते हैं ।
- आत्मा, बूॅंद, देह, बाहु आदि शब्द संस्कृत भाषा में पुल्लिंग होते हैं किंतु हिन्दी भाषा में स्त्रीलिंग होते हैं ।
- संस्कृत भाषा में ‘इमा’ प्रत्यान्तक शब्द यथा – महिमा, गरिमा, लघिमा, सीमा, आदि पुलिंग होते हैं किंतु हिन्दी भाषा में ये शब्द, तत्सम शब्द होते हुए भी स्त्रीलिंग होते हैं ।
- ‘अ’ प्रत्यान्तक – ( जय, विजय, पराजय) संस्कृत भाषा में पुल्लिंग होते हैं किंतु हिंदी भाषा में स्त्रीलिंग होते हैं ।
- कृत और तद्धित प्रत्ययों से बने विशेषण या कृतवाच्य शब्द स्त्रीलिंग या पुल्लिंग शब्द के साथ यथावत ही प्रयुक्त होते हैं । जैसे – आकर्षक – दृश्य या घटना । देदीप्यमान- प्रकाश या ज्योति । परिचित – पुरुष या महिला । धार्मिक – संगठन या संस्था । धर्मज्ञ – पुरुष या नारी ।
- सर्वनाम में लिंग के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं किया जाता हैं।
- सभी प्रकार के पदवाची शब्दों में भी लिंग परिवर्तन नहीं होता है। जैसे की राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, डाक्टर, मैनेजर, प्रिंसिपल आदि।
– विकिपीडिया के अनुसार :
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शब्द रूपांतरण की परिभाषा
इन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है- 1. विकारी 2. अविकारी
1. विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
2. अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
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